तुम्हारा यूं मिलना कोई इत्तेफाक ना था, दिल पर चोट पड़ी है तब तो आह लबों तक आई है धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है…” खुद ही दर पे दस्तक दूँ और खुद ही पूछूं कौन? ज़ख़्म ही तेरा मुक़द्दर हैं दिल तुझ को कौन सँभालेगा मेरी तन्हाई https://youtu.be/Lug0ffByUck